तेरे मन में चोर न हो

तू इतना कमज़ोर न हो तेरे मन में चोर न हो   जग तुझको पत्थर समझे इतना अधिक कठोर न हो   बस्ती हो या हो फिर वन पैदा आदमख़ोर न हो   सब अपने हैं सब दुश्मन बात न फैले, शोर न हो   सूरज तम से धुँधलाए ऐसी कोई भोर न हो